हरिद्वार। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की ओर से निर्धन निकेतन आश्रम में आयोजित संस्कृत शिक्षकों की तीन दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए अकादमी के सचिव डॉ.आनन्द भारद्वाज ने कहा कि संस्कृत भाषा भारत के प्राचीनतम गौरव की पहचान है। देववाणी संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार के लिए अकादमी निरंतर कार्य कर रही है।

उन्होंने कहा कि संस्कृत शिक्षा में नई शिक्षा नीति 2020 के अन्तर्गत संस्कृत विद्यालयों में पाठ्क्रम और पाठ्यचर्या के क्रियान्वयन तथा संस्कृत को विश्वस्तर पर पहुंचाने के लिए शिक्षक एवं प्रशिक्षण अत्यन्त आवश्यक होगा। संस्कृत हमारी संस्कृति और ज्ञान परम्परा का मूलभूत आधार है। संस्कृत एक वैज्ञानिक भाषा है, संस्कृत के समृद्ध होने से अन्य समस्त भारतीय भाषाएं समृद्ध होंगी।
संस्कृत संबर्द्धन प्रतिष्ठान नई दिल्ली के कार्यपालक अधिकारी डाॅ. लक्ष्मी नरसिंह ने संस्कृत अध्यापकों को संस्कृत माध्यम से ही अध्यापन किये जाने पर बल दिया। संस्कृत माध्यम से ही शिक्षण कराये जाने से भाव, विषय, ज्ञान और भाषा का समन्वय श्रेष्ठ शिक्षण माना जाता है। प्रशिक्षण कार्यशाला के समन्वयक किशोरी लाल रतूड़ी ने बताया कि तीन दिनों तक चलने वाले आवासीय प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रदेश के 13 जनपदों से 65 संस्कृत विद्यालय व महाविद्यालयों के 103 पंजीकृत प्रधानाचार्य एवं शिक्षक प्रतिभाग कर रहें हैं। उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए अकादमी के शोध अधिकारी डॉ. हरीशचन्द्र गुरुरानी बताया कि संस्कृत शिक्षकों को आधुनिक माध्यम से संस्कृत शिक्षण कराये जाने तथा छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए इस प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता है।इस अवसर पर डॉ. मनमोहन शर्मा, डॉ. पारुल सिंह, सुनील शर्मा सहित संस्कृत अकादमी के प्रशासनिक अधिकारी लीलारावत, डॉ. तारादत्त अवस्थी, अमित थपलियाल, विवेक पंचभैय्या, गणेश प्रसाद, अवधेश, आकांक्षा, ओमप्रकाश भट्ट, अश्विनी, सुनील आदि उपस्थित रहे।