भ्रष्ट प्रधानाध्यापकों के नाम खुला पत्र
—————————————–
सभी भ्रष्टाचार में लिप्त प्रधानाध्यापकों को मेरा तिरस्कार भरा नमस्कार। उम्मीद करता हूँ उम्र के साथ आपका ब्लड प्रेशर, शुगर एवं जोड़ो का दर्द असामान्य होगा। यदि सबकुछ ठीक भी चल रहा होगा तो वह जल्द ही और खराब हो ऐसी मेरी प्रार्थना है। अप्रिय मित्रों स्वर्ग और नर्क किसी ने नहीं देखे हैँ। जो तुम विद्यालयों में भ्रष्टाचार मचाकर खुद को भगवान/ अल्लाह के यहाँ प्रसाद चढ़ाकर पाक साफ समझते हो उसका लेखा जोखा सब तैयार है। बच्चों के हक़ का जो पैसा तुम बिन डकार के निगल रहे हो वह पूरी जिंदगी में सिर्फ एक झटका देगा और तुम्हारी साँसे ऊपर की ऊपर नीचे की नीचे रह जायेगी। आप सोच रहे होंगे की आज ऐसा क्या हो गया कि मुझे आपके नाम खुला पत्र लिखने कि जरुरत क्यों पड़ी तो मजमून यह है कि आपने चिन्दी मारी चोर बाज़ारी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैँ। बच्चों के चावल बचाकर डीलर से कमीशन, पतली पतली बिना मसालों कि दाल, मेनू से सब्जी का अकाल और अतिरिक्त पोषण को खाकर जो आप खुद का पोषण कर रहे हो वह आपको निश्चित ही कुपोषण प्रदान करेगा। आदमी का कर्म उसके साथ जाता है। मंदिर मस्जिद में भगवान और अल्लाह को रिश्वत देने से तुम क्या समझते हो बच जाओगे तुम नहीं तो आने वाली पुश्तों को इसका हिसाब देना होगा। क्योंकि इस बच्चों के पैसों को डकारकर तुम अपने बच्चों को ही तो खिला रहे हो। इन बच्चों को क्यों पाप का भागीदार बना रहे हो। हमारे कार्यस्थल पर पढ़ने आने वाले बच्चों से हमारा घर चलता है और हमारा पेट उससे भी नहीं भर रहा तो बेईमानी के पैसों से क्या ही भरेगा। दाल बनेगी तो उसमे दाना नहीं, सब्जी बनेगी तो सिर्फ सोयाबीन। कोई मानक नहीं बस मानक है तो 06.23 पैसे में से कितने बच जाएं। अतिरिक्त पोषण के 5 रुपये में या तो खर्च नं हों, और यदि हों भी तो आधे। आखिर बेईमानी की भी कोई हद होती है। वो तो भला हो व्यवस्थापकों का जो खिचड़ी बंद कर दी वरना प्रतिदिन का मेनू यही था। कितना पैसा बटोरोगे भाई, बिल्डिंग, इको क्लब, किचन गार्डन, लघु वृहद मरम्मत, लाइब्रेरी, स्पोर्ट्स, बच्चों की वर्दी, जूते-बैग में कमीशन, सब बिल बाउचर में तीन तेरह। हद की भी हद होती है। पैसा ठिकाने लगाकर जो तुम सहायकों को एक एक रुपये की फोटोकॉपी, स्टेशनरी के लिये तरसाते हो यह भी तुम्हारा कुकर्म है। याद रखिये तुम्हारा अस्तित्व इन बच्चों से ही है। इनके हक को मारने से तुम्हारा भला नहीं हो सकता। अब भी वक़्त है सुधर जाओ और अपने भ्रष्ट पापों का प्रायश्चित करो। नवरात्र में घर में कन्या जिमाकर, हज करके खुद को हाजी कहकर कुछ होने वाला नहीं। इस भ्रष्ट आचरण को बदलो चारो धाम मक्का मदीना सब यंही हैँ।
मुझे पता है मेरी बात आपको अच्छी नहीं लगेगी। अच्छी लगने के लिये यह पत्र लिखा भी नहीं। मकसद है कि शायद कुछ कि अंतर्रात्मा जाग जाए और हमारे स्कूलों के बच्चों का भला हो।
अल्प आशा में
अच्छे की कामना के साथ
डॉ. शिवा अग्रवाल
( डिसक्लेमर – विभिन्न सहायक अध्यापकों के फीडबैक आदि के आधार पर यह पत्र लिखा गया है। जो प्रधानाध्यापक अच्छा काम कर रहे हैँ उन्हें साधुवाद। अच्छे से दुनिया चलती है। जो गलत कर रहे उनको परेशानी होनी स्वभाविक है क्योंकि यह अप्रिय सत्य है)