डॉ. शिवा अग्रवाल हरिद्वार। महात्मा गांधी का उत्तराखण्ड से गहरा लगाव था। उन्होने कई बार उत्तराखण्ड की यात्रा की तथा यहां असीम मानसिक शांति का अनुभव किया। उस समय हरिद्वार तक आने का साधन रेल था इस कारण वह जब—जब गढ़वाल या कुमायूं गये तो हरिद्वार आए। महात्मा गांधी जब विदेश से वापिस आए तो वह कलकत्ता से हरिद्वार पहुंचे। उस वक्त यहां कुंभ मेला चल रहा था जहां उन्होने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी संग कई दिन बिताए।
1915 तथा उसके बाद महात्मा गांधी की हरिद्वार यात्राओं के कई वृतान्त इतिहास में दर्ज हैंं। स्वयं गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में यहां आने तथा अपनी मुलाकातों का जिक्र किया। अपने विदेशी प्रवास के दौरान गुरूकुल कांगड़ी के संस्थापन स्वामी श्रद्धानन्द के कहने पर यहां के ब्रह्मचारियों द्वारा उन्हें भेजी गयी मदद से वह गहरे प्रभावित हुए थे। उन दिनों वैसे भी स्वामी श्रद्धानंद शैक्षिक क्रान्ति का बिगुल बजा चुके थे तथा कांगड़ी गांव में गुरूकुल की स्थापना हो चुकी थी। वर्ष 1915 में जब गांधी जी हरिद्वार पहुंचे तो वह सर्वप्रथम गुरूकुल गये तथा स्वामी श्रद्धानन्द से मुलाकात कर गुरूकुल को देखा। वहां से वापसी के उपरान्त उन्होेने हरिद्वार कुंभ में अपना कैंप किया तथा इसी बीच स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से बने रामकृष्ण मिशन चिकित्सालय भी वह आए तथा यहां के सेवा प्रकल्पों को देखा। महाकुंभ में हरिद्वार आए महात्मा गांधी यह देखकर आश्चर्य चकित रह गए कि आवागमन के बहुत कम साधनों के बावजूद लाखों श्रद्धालु हरिद्वार पहुंचे। बापू ने आत्मकथा में लिखा है कि वह उस समय धर्म-कर्म पर विश्वास नहीं करते थे। अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के बुलावे पर वह भारत लौटे थे। गोखले ने उन्हें हरिद्वार जाकर स्वामी श्रद्धानंद से मिलने का निर्देश दिया था। आत्मकथा में बापू ने लिखा है कि भले वे स्वयं धर्मकर्म में विश्वास नहीं रखते थे, लेकिन कुंभ का पुण्य लेने आए 17 लाख श्रद्धालुओं की आस्था गलत नहीं हो सकती। बहुत से कुंभ स्नानार्थी ऊंटों, घोड़ों और बैलगाड़ियों पर सवार होकर आए थे। तब आवागमन का एकमात्र साधन रेलगाड़ियां थीं। वह भी काफी कम संख्या में चलती थीं। बापू ने लिखा कि तीर्थ और गंगा के प्रति लोगों की आस्था अद्भुत है। कुंभ की भीड़ ने ही महात्मा को एक स्थान पर लघु भारत का दर्शन करा दिया था। कहते हैं कि जहां बापू ठहरे थे वहां उनके दर्शन करने भारी तादाद में लोग आते थे। गांधी जी हरिद्वार में गंदगी से बहुत दुखी थे। उन्होने लिखा है कि यहां गंदगी बहुत है। संकरी गलियां हैं और पतनालों पर पाइप नहीं लगे हैं। लोग गंगा स्नान कर जब इन संकरी गलियों से निकलते हैं तो खुले पतनाले का गंदा पानी उन पर गिरता रहता है।